लेखनी कहानी -आमदनी
आमदनी
आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया,
ऐसा जमाना आया देखो भैया।
चादर से ज्यादा पांव फैलाएं,
उधार की रोटी वह तो खाएं।
रिश्ते भरने में जीवन गवाएं,
चैन से फिर रह नहीं पाए।
पगार से पहले कर्जा चुकाए,
पूरा महीना रोते जाएं।
जैसे तैसे वक्त गुजारे,
ऐशो आराम के साधन जोड़ें।
कर्ज से वह तो नाता जोड़े,
सिर पकड़ कर फिर वह रोए।
क़र्जे वाले पीछे दौड़े,
करो ना तुम कुछ ऐसा भाई,
जितनी चादर उतने पांव फैलाओ।
आमदनी अपनी पहले बढ़ाओ,
थोड़ा सा परिश्रम कर जाओ।
जितना कमाओ उतना खाओ,
थोड़ा पीछे के लिए बचाओ।
अपनी चादर संग पाँव फैलाओ।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा
30.3.२०२२
वार्षिक प्रतियोगिता के लिए
Seema Priyadarshini sahay
01-Apr-2022 09:49 PM
बहुत खूबसूरत
Reply
Anam ansari
31-Mar-2022 01:55 PM
Buhat acha
Reply
Renu
30-Mar-2022 10:19 PM
बहुत ही बेहतरीन
Reply